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रविवार, 22 जून 2025

भारत एक दर्शन, दृष्टि एवं विचार है : प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठीराष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश की काशी इकाई द्वारा 'विरासत भारतीय ज्ञान परंपरा' विषयक पुस्तक लोकार्पितवाराणसी। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश की काशी इकाई द्वारा रविवार को 'विरासत भारतीय ज्ञान परंपरा' विषयक पुस्तक का लोकार्पण समारोह महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के डॉ. भगवान दास केंद्रीय पुस्तकालय के समिति कक्ष में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि भारत एक भूखंड नहीं है, भारत एक दर्शन, दृष्टि और विचार है। आज संपूर्ण विश्व आतंकवाद के विस्फोट के मुहाने पर खड़ा है, ऐसे में हमारी विरासत से निकले वेद मंत्रों जिसमें क्रतवो यंतु विश्वत: की बात कही गई है के मार्ग का अनुसरण करना ही सबके लिए कल्याणकारी होगा।राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के पूर्व अध्यक्ष व 'विरासत भारतीय ज्ञान परंपरा' के प्रधान संपादक डॉ. दीनानाथ सिंह ने कहा कि शिक्षा प्रदान करने का मतलब है कि शिक्षक यह सुनिश्चित करें छात्र में नैतिकता आ रही है कि नहीं और क्या उसका चरित्र बन रहा है। विषय प्रवर्तन करते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की प्रदेश अध्यक्ष प्रो. निर्मला सिंह यादव ने कहा कि राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राष्ट्र के हित में शिक्षा, शिक्षा के हित में शिक्षक, और शिक्षक के हित में समाज की अवधारणा को मजबूत करने का कार्य कर रहा है। हमें छात्र के अंदर राष्ट्रीय मनोभावों को पिरोने का कार्य करना है।मुख्य वक्ता प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संगठन मंत्री रामाशीष ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा श्रुति स्मृति और अनुभूति पर आधारित है। परम के भी पार परम है, उसको कैसे प्राप्त करना है यह हमें सुनिश्चित करना पड़ेगा। विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग के सदस्य डॉ. हरेंद्र कुमार राय ने कहा कि हमें अगली पीढ़ी की खुशहाली के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा की विरासत को सहेज कर रखना होगा। विशिष्ट अतिथि ऑनलाइन सभा को संबोधित करते हुए महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय बीकानेर के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया तथा विनम्रता सच्चाई अनुशासन आत्मनिर्भरता और सम्मान जैसे मूल्यों पर बल दिया। शिक्षा व्यवस्था को समावेशी और समावेशन के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा का अनुशीलन करना होगा। विशिष्ट अतिथि व विद्या भारती पूर्वी क्षेत्र के उपाध्यक्ष डॉ. रघुराज सिंह ने बदलते हुए समय के साथ ही स्वयं को बदलने की बात करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा की विरासत में शास्त्र और शास्त्र दोनों को लेकर चलने की आवश्यकता पर जोर दिया।विशिष्ट अतिथि के रुप में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के कुलसचिव व परीक्षा नियंत्रक डॉ. विनोद कुमार सिंह एवं महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की कुलसचिव डॉ. सुनीता पांडेय ने भी अपना विचार व्यक्त किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति के प्रतिनिधि विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. के.के. सिंह ने 'विरासत भारतीय ज्ञान परंपरा' के संपादक मंडल और लेखकों की प्रशंसा करते हुए पुस्तक में प्रस्तुत विचारों को क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में जन-जन तक पहुंचाने पर जोर दिया।संचालन प्रो. अंजू सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जगदीश सिंह दीक्षित ने किया। कार्यक्रम संयोजन में कार्यक्रम सचिव अमिताभ मिश्र, डॉ. रवि प्रकाश सिंह प्रो. नलिन कुमार मिश्र, डॉ. राम प्रकाश सिंह यादव, रजनी राय का विशेष योगदान रहा। इस अवसर पर वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव अजीत कुमार सिंह, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कार्य परिषद सदस्य डॉ. हरिहर प्रसाद सिंह, प्रो. अशोक कुमार सिंह, प्रो. रणंजय सिंह, प्रो. प्रेम प्रकाश सोलंकी, प्रो. अरुण कुमार राय, प्रो. राकेश कुमार पांडेय, प्रो. राघवेंद्र कुमार पांडेय, प्रो. नलिनी श्याम कामिल, प्रो. आनंद शंकर चौधरी, प्रो. सुरेंद्र राम, रामाशीष शर्मा, संतोष तिवारी, नीलम राय, नीलू त्रिपाठी, शीला यादव, गायत्री सिंह, डॉ. शिव प्रसाद पांडेय, पंकज त्रिपाठी, प्रदीप यादव, दीपशिखा सिंह, डॉ. सरोज पांडेय, डॉ. संजय गुप्ता, डॉ. प्रमोद पांडेय, विजयेन्द्र कुमार सिंह आदि उपस्थित रहे।

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