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शुक्रवार, 27 जून 2025

*मोहर्रम का चांद दिखते ही शुरू हुआ। या अली या हुसैन सदाएं। मौलाना तनवीर रजा * जमानियां। इस्लाम के सबसे खास महीनों में से एक भी माना जाता है। इस महीने शांति कायम रखने, किसी भी तरह के विवाद या युद्ध से बचने की सलाह दी जाती है। मोहर्रम की 10 वीं तारीख को रोज-ए-आशूरा कहा जाता है। जिसका इस्लाम में खास महत्व है। मोहर्रम का चांद गुरुवार 26 जून को दिखाई दिया। इस लिए 27 जून यानी शुक्रवार को मोहर्रम की पहली तारीख है। और हजरत इमाम हुसैन की शहादत रोज-ए-आशूरा को मनाया जाएगा। उक्त जानकारी कस्बा बनाए स्थित शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा ने बताया कि मोहर्रम इस्लाम के सबसे खास महीनों में से एक भी माना जाता है। इस महीने शांति कायम रखने किसी भी तरह के विवाद या युद्ध से बचने की सलाह दी जाती है। और मोहर्रम की 10 वीं तारीख को रोज-ए-आशूरा कहा जाता है। जिसका इस्लाम में खास महत्व है। उन्होंने बताया कि मोहर्रम का चांद 26 जून को देखा गया। गुरुवार को मोहर्रम का चांद दिखने के साथ ही इस्लामिक नव वर्ष की शुरुआत हो गई है। जिसकी पहली तारीख 27 जून शुक्रवार को होगी। आपसी भाईचारगी पर जोर देने वाले मौलाना तनवीर रजा ने बताया कि इस्लामिक कलेंडर का पहला महीना यानी मोहर्रम का चांद गुरुवार को देखा गया। नए साल की पहली तारीख 27 जून शुक्रवार को होगी। 6 जुलाई को मुहर्रम की दस तारीख यानी यौमे आशुरा होगा। इस दौरान उन्होंने कहा कि किसी तरह का उत्सव नहीं होगा। मुस्लिम महिलाएं अपने अपने घरों में बैठकर कुरान की तिलावत शुरू कर देना चाहिए। रजा ने बताया कि कर्बला की जंग में शहीद हुए इस्लाम धर्म के अंतिम पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन समेत 72 लोगों को याद किया जाएगा। मौलाना तनवीर रजा ने बताया कि इस्लामी नया साल को हिजरी साल भी कहा जाता है। भारत में मोहर्रम का चांद दिखने के बाद इस्लामी नया साल शुक्रवार, 27 जून से शुरू हुआ। शुक्रवार को मोहर्रम की रस्मों की शुरुआत के छोटे बड़े मुस्लिम युवक अखाड़ा और मातम के माध्यम से निकलता है। रजा ने बताया कि इस्लामी नए साल 1447 हिजरी का औपचारिक आगाज हो गया है। उन्होंने बताया कि हिजरी नव वर्ष इस्लामी इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण हिजरत की याद दिलाता है। यह वह दौर था। जब पैगंबर मुहम्मद ने उत्पीड़न से बचने के लिए मक्का से मदीना की ओर प्रवास किया था। यह घटना केवल एक यात्रा नहीं थी। बल्कि इसने एक संगठित मुस्लिम समुदाय की नींव रखी। और इस्लामी समाज और कानून के शुरुआती गठन का मार्ग प्रशस्त किया। ईद-उल-फित्र या ईद-उल-अज़हा की तरह इस दिन बड़े उत्सव नहीं होते। लेकिन यह एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह दिन व्यक्तिगत चिंतन, प्रार्थना और धार्मिक मनन को प्रोत्साहित करता है। मोहर्रम का पर्व शांति और इबादत का महीना कहा जाता है। मोहर्रम इस्लाम के उन चार पवित्र महीनों में से एक है। जिनमें युद्ध करना प्रतिबंधित है। यह नियम इस महीने के आध्यात्मिक दर्जे को और बढ़ा देता है। जिससे यह भक्ति, दान और आत्म-निरीक्षण का समय बन जाता है। पहली मोहर्रम न केवल एक नए कैलेंडर वर्ष की शुरुआत है। बल्कि दुनिया भर के मुसलमानों के लिए अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों और इरादों को नवीनीकृत करने का एक अवसर भी है। मौलाना तनवीर रजा ने बताया कि शिया और सुन्नी समुदाय के लिए अलग हैं मायने। हालांकि हिजरी नव वर्ष पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए अहम है। लेकिन शिया और सुन्नी मुसलमान इसे अपने-अपने तरीके से मनाते हैं। खासकर शिया समुदाय के लिए, मुहर्रम के पहले 10 दिन शोक की अवधि होते हैं। मुहर्रम की 10वीं तारीख को 'आशूरा' कहा जाता है। इसी दिन 680 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को कर्बला की जंग में शहीद कर दिया गया था। इस दिन शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर मातम मनाते हैं।और जुलूस निकालते हैं। वहीं सुन्नी मुसलमान आशूरा' के दिन स्वैच्छिक रोजा रखते हैं। उनके लिए यह दिन उस घटना की याद दिलाता है। जब हज़रत मूसा ने लाल सागर को पार किया था। फोटोकस्बा बाजार स्थित शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा, सलीम मंसूरी की रिपोर्ट जमानिया

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